तारा माता
तारा माता हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं और उन्हें दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। तारा माता को ज्ञान, करुणा, और शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। उनका नाम "तारा" का अर्थ होता है "सतह पार कराने वाली" या "संकटों से मुक्ति दिलाने वाली।" तारा माता भक्तों को दुख, संकट और अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकालकर ज्ञान और मुक्ति की ओर ले जाती हैं। तारा को तिब्बती बौद्ध धर्म में भी उच्च सम्मान प्राप्त है, जहां उन्हें तारा देवी के रूप में पूजा जाता है।
तारा माता के रूप:
तारा माता को नीले रंग की देवी के रूप में दर्शाया जाता है। उनके स्वरूप को आकाश या महासागर की तरह विस्तृत और गहरा माना जाता है। उन्हें हाथ में खड्ग (तलवार), खप्पर (कटे हुए सिर की माला) और कमल धारण किए हुए दिखाया जाता है, जो जीवन और मृत्यु दोनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
तारा माता के प्रतीक और गुण:
नीला रंग: तारा माता का नीला रंग आकाश और अनंतता का प्रतीक है, जो ज्ञान और असीम संभावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
कमल: कमल प्रतीक है पवित्रता, सत्य और मोक्ष का, जो यह दर्शाता है कि तारा माता ज्ञान की देवी हैं।
तलवार और खप्पर: तलवार अज्ञानता और बाधाओं को काटने का प्रतीक है, जबकि खप्पर जीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाता है, जिससे तारा माता मुक्ति प्रदान करती हैं।
तारा माता का पूजन और महत्व:
तारा माता की पूजा विशेष रूप से साधक, तांत्रिक और भक्त द्वारा की जाती है जो मोक्ष, ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति के लिए तारा की शरण में आते हैं। तारा माता भय, संकट और बंधनों से मुक्त करने वाली देवी हैं। भक्तों का मानना है कि वे सभी प्रकार की बुराइयों, शत्रुओं और बाधाओं से रक्षा करती हैं और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति में मदद करती हैं।
तारा माता की कथा:
एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब विष निकलने से सभी जीवों का विनाश होने लगा। इस विष का नाश करने के लिए भगवान शिव ने इसे अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। जब शिव जी को कंठ में अत्यधिक जलन होने लगी, तब तारा माता प्रकट हुईं और उन्होंने शिव जी को अपनी गोद में लिया तथा उन्हें विष से मुक्त किया। इस घटना के बाद तारा माता को "नील सरस्वती" भी कहा जाता है।
बौद्ध धर्म में तारा माता:
बौद्ध धर्म में तारा देवी को करुणा की देवी माना जाता है, और उनके दो प्रमुख रूप होते हैं: श्वेत तारा (सफेद तारा) जो करुणा और दीर्घायु की देवी हैं, और नील तारा (हरी तारा) जो रक्षक और संकट से मुक्त करने वाली देवी मानी जाती हैं। तारा बोधिसत्त्व भी मानी जाती हैं, जो सभी प्राणियों की मुक्ति के लिए कार्य करती हैं।
तारा माता का मंत्र:
तारा माता की स्तुति और ध्यान में निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:
"ॐ ह्रीं स्त्रीं ह्रूं फट्" यह मंत्र शक्ति, करुणा और मुक्ति के आह्वान के लिए जपा जाता है।
तारा माता भक्तों को शरण में लेकर उन्हें सुरक्षा और शक्ति प्रदान करती हैं। उनकी पूजा तंत्र और साधना में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है, और उन्हें संकटमोचन, ज्ञानप्रदाता और मुक्तिदायिनी के रूप में पूजा जाता है।
तारा माता
तारा माता हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं और उन्हें दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। तारा माता को ज्ञान, करुणा, और शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। उनका नाम "तारा" का अर्थ होता है "सतह पार कराने वाली" या "संकटों से मुक्ति दिलाने वाली।" तारा माता भक्तों को दुख, संकट और अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकालकर ज्ञान और मुक्ति की ओर ले जाती हैं।
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ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ।।
जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणामलोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम ।।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा ।।